अनुपम, असाधारण, अद्वितीय अयोध्या का श्री राम मंदिर
अनुपम, असाधारण, अद्वितीय अयोध्या का श्री राम मंदिर
500 वर्षों की अथक लड़ाई, लम्बे और लगातार चले कानूनी और राजनितिक संघर्ष का परिणाम
500 वर्षों की अथक लड़ाई, लम्बे और लगातार चले कानूनी
और राजनितिक संघर्ष के बाद आखिरकार भारत के उच्चतम
न्यायालय के आदेश के बाद परम पावन अयोध्या धाम में प्रभु
श्रीराम का भव्य दिव्या मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ, जब
संघर्ष उतना लंबा और कठिन हो तो ये आवश्यक है की इससे मिलने वाला फल भी उतना ही बहुमूल्य और असाधारण हो, इसीलिए आज अयोध्या के पवन धरती पर प्रभु श्रीराम का जो अलौकिक मंदिर बन रहा है वो भी पुरे संसार में अनुपम, असाधारण और अद्वितीय ही है, राम लल्ला के प्राण प्रतिष्ठा का समय जैसे जैसे करीब आ रहा है लोगों में मंदिर के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है, अपने दर्शकों के इसी उत्सुकता को दूर करने के लिए आज हम प्रभु श्री राम के मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी विस्तार में साझा करने वाले हैं तो फिर आइये जानते हैं अयोध्या में बनने वाले भव्य दिव्या राम मंदिर के कुछ आश्चर्यजनक तथ्य
दिव्य राम मंदिर के कुछ आश्चर्यजनक तथ्य
राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अनुसार, "राम मंदिर की निर्माण तीन मंजिला हो रहा है, जो कि पारंपरिक नागर शैली में बनाया गया है, नागर शैली भारत में विशाल मंदिर बनाने की एक पुरानी शैली है, हम सबने अपने जीवन में कई मंदिरों के दर्शन किये हैं जो नागर शैली में ही बने हैं, पूरी स्थित भगवान् जग्गनाथ का मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, लिंगराज मंदिर, सोमनाथ मंदिर और खजुराहों मंदिर जैसे कई प्राचीन मंदिर नागर शैली में ही बने हैं हैं, नागर शैली गुप्तकाल में विकसित हुयी और अपने बेजोड़ बनावट और सुदृढ़ता की वजह से देखते ही देखते हिमालय से लेकर विंध्य क्षेत्र के भूभागों में छा गयी
नागर शैली में बना है अयोध्या का श्री राम मंदिर
वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान, आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। पुर्ण विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके सामने क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप बने होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से जुड़े इन भागों का निर्माण किया जाता है। नागर शैली के आठ महत्वपूर्ण भाग होते हैं
- पहला , मूल आधार यानी जिस पर पूरा भवन खड़ा किया जाता है।
- दुसरा मसूरक यानी नींव और दीवारों के बीच का भाग
- तीसरा जंघा यानी दीवारें ख़ास कर गर्भगृह की दीवारें
- चौथा कपोत या कार्निस
- पांचवा शिखर यानी मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग
- छठा ग्रीवा या शिखर का ऊपरी भाग
- सातवा वर्तुलाकार आमलक यानी शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
- आंठवा कलश यानी शिखर का शीर्षभाग
इसी तरह अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर का आकार पूर्व-पश्चिम 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। मंदिर का प्रत्येक फ्लोर 20 फीट ऊंचा है। इसमें 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। मुख्य गर्भगृह में श्री रामलला की मूर्ति होगी और पहली मंजिल पर श्री राम दरबार होगा है। मंदिर में 5 मंडप होंगे नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप। खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी होंगी । मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से होगा जिसके पहले 32 सीढ़ियां चढ़कर भक्तजन सिंह द्वार पहुंचेंगे ।दिव्यांगजन एवं वृद्धों की सुविधा के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
श्री रामलला मंदिर का परिसर
इसी तरह अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर का आकार पूर्व-पश्चिम 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। मंदिर का प्रत्येक फ्लोर 20 फीट ऊंचा है। इसमें 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। मुख्य गर्भगृह में श्री रामलला की मूर्ति होगी और पहली मंजिल पर श्री राम दरबार होगा है। मंदिर में 5 मंडप होंगे नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप। खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी होंगी । मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से होगा जिसके पहले 32 सीढ़ियां चढ़कर भक्तजन सिंह द्वार पहुंचेंगे ।दिव्यांगजन एवं वृद्धों की सुविधा के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
अयोध्या के भव्य दिव्य राम मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा बनाया जा रहा है। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी। परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा। राम मंदिर के निकट पौराणिक काल का सीताकूप ज्यों का त्यों रहेगा। मंदिर परिसर में अन्य कई मंदिर भी होंगे जो महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी और ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
राम मंदिर के दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर स्थित भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है और वहां जटायु के प्रतिमा की स्थापना की गई है।
मंदिर निर्माण में नहीं हुआ है लोहे का उपयोग
मंदिर में लोहे का प्रयोग बिलकुल नहीं किया गया है । धरती की सतह के ऊपर सीमेंट या कंक्रीट का कोई अंश नहीं है। मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है। मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है। मंदिर परिसर के लिए अलग से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, फायर ब्रिगेड के लिए पानी की व्यवस्था और स्पेशल पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी सुविधाओं पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं की अभूतपूर्व व्यवस्था
25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी। मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी। मंदिर का निर्माण पूरी तरह भारतीय परम्परानुसार और स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा खुला और हरा भरा रहेगा। 70 एकड़ भूभाग के सिर्फ उत्तरी भाग में ही निर्माण कार्य हो रहा है।
आधुनिक और प्राचीन निर्माण शैली का अद्वितीय संगम
इस मंदिर को बनाने में परंपरागत प्राचीन शैली और संस्कृति का समावेश तो है ही, साथ ही नई तकनीक का भी इस्तेमाल हो रहा है. हर साल रामनवमी में श्रीराम की मूर्ति पर सूर्य की किरणों को पहुंचाने का जतन हो, मंदिर में लगे पत्थरों को जोड़ने की पद्धति हो या फिर भूकंप में भी अटल रहने वाली नींव हो, मंदिर के रास्ते में आ रही सभी बाधाओं को विज्ञान की मदद से दूर किया गया है. वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और कई एजेंसियों की टीम मिलकर ये तय कर रही है कि श्रीराम मंदिर दीर्घायु हो. इस काम में IIT चेन्नई, IIT दिल्ली, IIT गुवाहाटी, IIT मुंबई, IIT मद्रास, NIT सूरत और IIT खड़गपुर के अलावा CSIR यानी Council of Scientific & Industrial Research और CBRI यानी सेंट्रल बल्डिंग रिसर्च इंस्ट्टीट्यूट ने मदद की. जबकि लार्सन एंड टूबरो और टाटा के एक्पर्ट इंजीनियर्स ने भी रामकाज में अहम भूमिका निभाई है.
एक हजार साल तक यूँ बना रहेगा श्री रामलला मंदिर
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का कहना है कि अगले एक हजार साल तक मंदिर को ना तो किसी मरम्मत की जरूरत पड़ेगी, ना ही इसमें किसी तरह की कोई दिक्कत आएगी. यहां तक कि मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि 6.5 रिक्टर पैमाने जैसी उच्ची तीव्रता वाले भूकंप भी इसे हिला नहीं पाएंगे.
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना श्री रामलला मंदिर
तो देखा आपने ऐसा अनुपम अद्वितीय और असाधारण मंदिर दुनीया में कोई दूसरा नहीं है, विशालता, भव्यता, मजबूती और सुंदरता के मामले में भी अयोध्या का राम मंदिर संसार के सभी अन्य मंदिरों और भवनों को काफी पीछे छोड़ चूका है, अभी तो ये शुरुआत भर है आने वाले समय में राम मंदिर का इस तरह विकास करने की योजना है की आने वाली असंख्य पीढ़ियां हमेशा हमेशा इस मंदिर में आ कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का पूजन करती रहेंगी