गर्भगृह में रामलला की पहली तस्वीर

 अरुण योगिराज द्वारा अयोध्या के राम लला की बनायी दिव्य मूर्ति की पहली झलक  

भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र पर बसी पावन अयोध्या धाम में प्रभु श्री राम चंद्र के भव्य दिव्य मंदिर का निर्माण कार्य अंतिम चरण पर है, आज दुनिया के कोने कोने में बेस करोड़ों राम भक्त अयोध्या के राम मंदिर में विराजने वाले, अरुण योगिराज द्वारा बनायी मूर्ति की एक झलक पाने को उत्सुक हैं 

आज हम आपके लिए इस मूर्ति की पहली झलक लेकर आएं हैं, जिनके दर्शन करने से ही मन में भक्ति और आस्था का ज्वार उमड़ पड़ता है।  काले पत्थर से निर्मित भगवान् राम की सावंली सलोनी मूर्ति बड़ी अध्भुत और दिव्य है।  इसके चेहरे पर निश्च्छल भाव हैं और जिनके नैनों में स्नेह का सागर समाया है, आप भी इस मूर्ति के दर्शन कर खुद को धन्य महसूस करेंगे

                                                                  रामलला की मूर्ति 

ऐसी है रामलला की मूर्ति 

गर्भगृह में विराजित की जाने वाली मूर्ति में कई तरह की खूबियां भी हैं। श्याम शिला की आयु हजारों साल होती है, यह जल रोधी होती है। चंदन, रोली आदि लगाने से मूर्ति की चमक प्रभावित नहीं होगी। पैर की अंगुली से ललाट तक रामलला की मूर्ति की कुल ऊंचाई 51 इंच है। चयनित मूर्ति का वजन करीब 150 से 200 किलो है। मूर्ति के ऊपर मुकुट व आभामंडल होगा। श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं। मस्तक सुंदर, आंखे बड़ी और ललाट भव्य है। कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर व धनुष होगा। मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलकेगी।

अरुण योगिराज ने तैयार की है रामलला की मूर्ति 




अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर शहर के रहने वाले हैं. वह एक प्रसिद्ध मूर्तिकारों के परिवार से आते हैं. उनकी पांच पीढ़ियां मूर्ति तराशने का काम करती चली आ रही हैं. अरुण देश के सबसे प्रसिद्ध मूर्तिकारों में से एक हैं. देश के अलग-अलग राज्यों में अरुण की तराशी गई मूर्तियों की बहुत ज्यादा मांग होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अरुण की प्रतिभा को लेकर उनकी तारीफ कर चुके हैं. अरुण ने अपनी कुशलता का इस्तेमाल कर एक से बढ़कर एक मूर्तियां बनाई हैं. 

पिता भी रहे हैं उत्कृष्ट मूर्तिकार 

अरुण के पिता योगीराज भी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं. उनके दादा बसवन्ना शिल्पी को मैसूर के राजा का संरक्षण हासिल था. अरुण योगीराज भी बचपन से ही मूर्तिकला के काम से जुड़े रहे हैं. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ वक्त तक एक प्राइवेट कंपनी में काम भी किया. हालांकि, वह अपने भीतर बैठे मूर्तिकार को ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं पाए. यही वजह रही कि उन्होंने 2008 से अपने मूर्तिकला के करियर को शुरू किया. 

सात माह तक  लगातार चला मूर्ति निर्माण 

अरुण योगिराज ने स्वयं रामलला की प्रतिमा बनाने की पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी थी।  उन्होंने बताया की यह प्रतिमा 5 साल के बालस्वरूप भगवान् राम की है।  इसको दिमाग में रख कर ही उन्होंने काम शुरू किया था।  अरुण ने बताया की करीब 6 से 7 महीने पहले उन्होंने इसे बनाने की शुरुवात की थी।  उन्होंने कहा की प्रतिमा का चयन होना ही काफिनाही है।  जब दर्शन करने वाले उनकी तारीफ़ करेंगे तब उन्हें सच्ची ख़ुशी होगी।  कर्नाटक के जाने माने मूर्तिकार अरुण योगिराज ने आदि शंकराचार्य की प्रतिमा भी गढ़ी थी जिसे केदारनाथ में स्थापित किया गया है।