चम्पई सोरेन के कोल्हान टाइगर से झारखण्ड टाइगर और अब झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनने की कहानी
चम्पई सोरेन कैसे बने झारखंड टाइगर
- सराईकेला -खरसांवा जिले के जिलिंगगोड़ा गाँव में जन्में चम्पई सोरेन
- खेती किसानी छोड़ दिशोम गुरु के आवाहन पर झारखण्ड आंदोलन से जुड़े
- कोल्हान इलाके में झारखण्ड आंदोलन का किया नेतृत्व
- निर्दलीय विधायक के रूप में शुरू राजनितिक सफर पहुंचा मुख्यमंत्री की कुर्सी तक
सरल, हंसमुख और मृदुभाषी चम्पई सोरेन के कोल्हान टाइगर बनने और झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनने तक की कहानी त्याग,समर्पण और सघर्ष की जीती जागती मिसाल है, अपनी मुस्कान और सहज स्वभाव से विरोधियों के भी प्रिय चम्पई सोरेन जेएमएम के उपाध्यक्ष और हेमंत सोरेन सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति और अनुसचित जाती एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री थे। हेमंत सोरेन के इस्तीफा देते ही चम्पई सोरेन को संयुक्त विधायक दल का नेता चुन लिया गया और इसके साथ ही झारखण्ड की सत्ता पर स्वच्छ और बेदाग़ छवि के चम्पई सोरेन की ताजपोशी का रास्ता साफ़ हो गया।
सरल, हंसमुख और मृदुभाषी चम्पई सोरेन के कोल्हान टाइगर बनने और झारखण्ड के मुख्यमंत्री बनने तक की कहानी त्याग,समर्पण और सघर्ष की जीती जागती मिसाल है, अपनी मुस्कान और सहज स्वभाव से विरोधियों के भी प्रिय चम्पई सोरेन जेएमएम के उपाध्यक्ष और हेमंत सोरेन सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति और अनुसचित जाती एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री थे। हेमंत सोरेन के इस्तीफा देते ही चम्पई सोरेन को संयुक्त विधायक दल का नेता चुन लिया गया और इसके साथ ही झारखण्ड की सत्ता पर स्वच्छ और बेदाग़ छवि के चम्पई सोरेन की ताजपोशी का रास्ता साफ़ हो गया।
कृषक परिवार में हुआ था जन्म, काम उम्र में ही हो गयी थी शादी
चम्पई सोरेन का जन्म 1 नवम्बर 1956 को तत्कालीन बिहार अब झारखण्ड के सराईकेला खरसांवा जिले के सिलिंगगोड़ा गाँव में हुआ। सिलिंगगोड़ा के श्री सिमल सोरेन और श्रीमती मादो सोरेन दम्पति जो की मूलरूप से एक कृषक थे के घर में चम्पई सोरेन का जन्म हुआ। चम्पई सोरेन चार भाई बहनों के परिवार में भाइयों में सबसे बड़े हैं।चम्पई सोरेन को अथक परिश्रम और जुझारूपन की सीख अपने माता-पिता से प्राप्त हुयी। भाइयों में सबसे बड़े होने के कारण उन्हें जल्दी ही खेती में पिता का हाथ बताना पड़ा। खेती के साथ साथ चम्पई में पढ़ने और हमेशा कुछ नया सीखने की ललक थी। चम्पई सोरेन ने सरकारी स्कूल से दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की। आगे और पढ़ने की उनकी हसरत अधूरी ही रह गयी क्योंकि इसी दौरान मानको से उनका विवाह संपन्न हो गया। विवाह के बावजूद भी चम्पई सोरेन अपने आदिवासी समाज के लिए कुछ कर गुजरने की चिंगारी दिल में दबाये बैठे थे, जिसे हवा मिली अलग झारखण्ड राज्य आंदोलन से।
दिशोम गुरु के प्रिय शिष्य चम्पई सोरेन
दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखण्ड अलग राज्य का आंदोलन गति पकड़ रहा था। अलग राज्य आंदोलन की खबर पढ़ते सुनते चम्पई सोरेन के मन में भी इस आंदोलन से जुड़ने और सक्रिय भागीदारी करने का होता लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों और कम उम्र के कारण वो खुल कर आंदोलन में शामिल नहीं हो पा रहे थे। चम्पई सोरेन के पिता श्री सिमल सोरेन जरूर इस आंदोलन में सक्रिय थे। श्री सिमल सोरेन शिबू सोरेन के नजदीकी भी थे और कोल्हान में आंदोलन के दौरान यदा कदा शिबू सोरेन से उनका मिलना जुलना भी होता ही रहता था। इसी मेलजोल ने चम्पई सोरेन के अंदर दबी चिंगारी को शोला बनाया और आखिरकार चम्पई खुल कर झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन में शामिल हो गए
जब चम्पई सोरेन को मिला कोल्हान टाइगर उपनाम
शांत लेकिन आक्रामक तेवर वाले चम्पई सोरेन के बारे में कहा जाता है की वो एक बार जिस चीज का निश्चय कर लेते हैं वो उसे पूरा कर के ही छोड़ते हैं , उनके कोल्हान टाइगर और फिर झारखण्ड टाइगर बन कर उभरने में उनके इस दृढ़ निश्चय का बहुत बड़ा हाथ है। चम्पई सोरेन को कोल्हान टाइगर का उपनाम तब मिला जब 2016 में जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील और उसके हजारों अस्थायी और ठेका मजदूर आमने सामने हो गए। इन मजदूरों में भारी संख्या अनुसूचित जनजाति और अनुसचित जातियों की थी। चम्पई सोरेन ने इस आंदोलन को धार दी और असंगठित मजदूरों को संगठित कर ऐतिहासिक हुड़का आंदोलन का सूत्रपात किया। चम्पई सोरेन के जुझारूपन और संगठनात्मक कौशल से आखिरकार इस आंदोलन की जीत हुयी और टाटा स्टील ने इन 1600 अस्थायी और ठेका मजदूरों को स्थायी कर लिया। ये एक ऐतिहासिक मौका था जब एक निजी कंपनी ने इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को स्थायी नौकरी दी और देखते ही देखते चम्पई सोरेन कोल्हान की मजबूत आवाज बन कर उभरे। यहीं से चम्पई सोरेन को कोल्हान टाइगर और टाइगर सोरेन का उपनाम मिला।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शुरू की राजनितिक पारी
पहली बार वर्ष 1991 में चम्पई सोरेन ने एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी राजनितिक पारी की शुरुआत की। इस चुनाव में चम्पई सोरेन ने सिंहभूम के तत्कालीन सांसद कृष्णा मार्डी की पत्नी मोती मार्डी को हराया। अपनी इस जीत के बाद चम्पई सोरेन का राजनितिक कद दिनोदिन बढ़ता ही रहा। चम्पई सोरेन झारखण्ड राज्य के मंत्री के रूप में तीन बार शपथ ले चुकें हैं। अपने रणनीतिक कौशल, संगठनात्मक कुशलता और विश्वस्त छवि के कारण आज हेमंत सोरेन के बाद जेएमएम के एकमात्र सर्वमान्य नेता हैं चम्पई सोरेन, यही कारण है की जाते जाते हेमंत सोरेन ने सरकार की कमान चम्पई के हाथों में सौपने का फैसला किया है।
मदद को हमेशा तैयार चम्पई दा
झारखण्ड आंदोलन में एक आम आंदोलनकारी, क्षेत्र के विधायक और राज्य के मंत्री के रूप में चम्पई सोरेन ने हमेशा पूरी सहृदयता के साथ जरूरतमंदों की मदद की है, उनके एक्स अकाउंट पर हजारों लोगों की मदद के लिए की गयी ट्वीट्स आज भी देखी जा सकती है, चार लड़कों और तीन लड़कियों के भरे-पुरे परिवार के मुखिया चम्पई सोरेन झारखण्ड राज्य के लिए एक नयी उम्मीद बन कर उभरे हैं और, उम्मीद है राज्य के नए मुखिया के रूप में उनका ये हँसता मुस्कुराता चेहरा लाखों लोगों की मुस्कराहट का कारण बन सकेगा।
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JHARKHAND POLITICS