जाड़े में अक्सर पलटी मारते हैं कुर्सीपति नितीश !

 कड़ाके की ठण्ड में पहले भी नितीश के पलटने का रहा है इतिहास !

  • नवंबर से लेकर मार्च तक का मौसम पलटी मारने के अनुकूल

  • पछुवा में पलटने से मिटती है ठंड 

  • ठण्ड के आते ही सहयोगी दल लगते हैं कांपने तो विपक्षियों की खिल जाती है बांछे 

शीत ऋतू के दैवीय तत्त्व करते हैं प्रेरित ? 

दोस्तों फिर ठण्ड आयी और पलट गए नितीश कुमार ! वैसे उनके पलटने के सम्बन्ध में जितना भी ऐतिहासिक डाटा उपलब्ध है उससे एक बात तो सिद्ध हो ही जाती है की ठण्ड में अक्सर पलटी मारते हैं नितीश कुमार। इतिहास में पहले भी पलटने, झुकने और यु टर्न मारने वाले कई कद्दावर राजनेता रहे हैं लेकिन जितनी शिद्दत, सफाई और संतुलन के साथ नितीश ने पलटी मारने का कौशल प्रदर्शित किया है कोई भी उनके आस-पास नहीं फटकता।तो क्या ये मात्र एक संयोग है या इस शीत ऋतू में ही कुछ ऐसे दैवीय तत्त्व मौजूद हैं जिनकी मदद से ऐसी सुन्दर पलटी मारते हैं नितीश कुमार, इसकी विवेचना अवश्य होनी चाहिए। 

ठण्ड में जड़ता के नियम को तोड़ पलट जाते हैं नितीश 

नितीश कुमार के पलटने पर विवेचना से पूर्व पाठकों से करबद्ध प्रार्थना है की पहले अपने नींव की जांच कर लें, कहीं ऐसा ना हो की विवेचना का अति महान कार्य करते हुए आप ही पलट जाएँ। जहां तक ठण्ड का विषय है कवियों, विद्वानों और श्रेष्टजनों ने इसे आलस्य का जनक कहा है, और ये बात नितीश के पहले तक सत्य भी प्रतीत होती थी। ठण्ड में मनुष्य जड़ हो जाता है, जम जाता है, स्थितिप्रज्ञ हो जाता है, ठण्ड के मौसम में आमतौर पर मानव का शरीर स्थूल रहता है मात्र नयन ही कौतुक करते हैं, भीषण ठण्ड में यदि पत्नी प्रणयपूर्ण भाव में एक गिलास पानी भी मांग दे तो पुरुष सिर्फ नयनों का इस्तेमाल कर कठोरता से उसे ना कर देता है। नदियाँ अपना नैसर्गिक स्वभाव यानी बहना छोड़ कर जम जाती हैं। पौधे विकसित होना छोड़ देते हैं, यहां तक की गली के खूंखार कुत्ते भी चोरों को देख बस कूँ भर कर पाते हैं, उस अति भीषण सर्दी में अपनी समस्त इन्द्रियों विशेषतः मस्तिष्क का इतना जटिल और पेशेवर इस्तेमाल कर नितीश कुमार पलट जाते हैं।  उनके द्वारा आलस्य का किया गया इतना बड़ा परित्याग उन्हें महापुरुषों की श्रेणी में सीधे ही स्थापित कर देता है। फिर भी भारतीय मीडिया की बेशर्मी देखिये की इतने बड़े त्याग को सिरे से नजरअंदाज कर वो खबरें क्या चलाती है की नितीश जी पलट गए ? नितीश जी द्वारा किये गए इस महाबलिदान की अनदेखी करने वाले उन पत्रकारों से पूछना चाहिए की क्या इस सर्दी में तुम पलट सकते हो ?  


 

प्रकृति की सीख है पलटना और पुनः वापस आना 

इतिहास गवाह है की विद्वानों के धरती पर कुकुरमुत्ते की तरह उगने से पहले मानव प्रकृति से ही शिक्षा ग्रहण करता रहा है। विद्यालय और महाविद्यालय और विश्वविद्यालय तो आज की देन है पहले इंसान प्रकृति को ही गुरु मान कर प्राकृतिक घटनाओं से सीखता था। संभवतः नितीश जी को भी किसी ताड़ या खजूर  के वृक्ष के निचे इस प्राकृतिक ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है। इसका सबसे प्रमुख कारण है की नितीश जी का पलटना, सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी के पलटने के समरूप ही है।  सूर्य की चाल भी दक्षिणायन से उत्तरायण, उत्तरायण से दक्षिणायन पलटती रहती है, चन्द्रमा भी पूर्णिमा से अमावस्या और अमावस्या से पूर्णिमा में पलटता रहता है, पृथ्वी का क्या है वो तो हर पल पलटी मारती ही रहती है तो फिर नितीश की पलटी से इतना खिन्न होकर प्रलाप करना अनावश्यक ही नहीं पाप का कारण भी है।  यदि मनुष्य सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी को उसके गति के लिए दोष नहीं देता तो नितीश जी को दोष कतई नहीं मिलना चाहिए। 

मिथकों को तोडना ही नितीश की पहचान 

हमने भारत के हर दूसरे आदमी को ये कहते हुए अवश्य सूना होगा की हम जुबान के पक्के हैं, वचन के पक्के हैं, वादा निभाते हैं जो करते हैं वो कर के दिखाते हैं, यदि आप इन सब कही गयी बातों की तह में जाएंगे तो वहाँ सिर्फ और सिर्फ दम्भ ही पाएंगे। यानी मनुष्य घमंड या प्रभाव दिखाने के उद्देश्य से ऐसी कपोल कल्पित बातें करता है। अगर आप समाज में ठगे गए लोगों के संस्मरण खंगाले तो आपको समझ आएगा की लोगों ने ऐसी बातें कह कर ही उनलोगों को ठगा था। इस तरह बातें दर-असल इंसानियत, ईमानदारी और स्वच्छ छवि की परिचायक ना होकर आज सिर्फ एक मिथक बन कर रह गयी हैं। और नितीश जी ने इस मिथक को तोडा है, तार तार कर के रख दिया है। "जुबान का पक्का होना", "वचन निभाना", ख़ास कर "मर जाएंगे लेकिन ये काम नहीं करेंगे" जैसे कथित भारी भरकम वचनों, संकल्पों और कसमों से दबे कुचले लोग आज नितीश कुमार को एक मसीहा के रूप में देख रहे हैं। नितीश जी ने ये साबित कर दिया की इन वचन और पूर्व में दिए गए संकल्प भरोसे लायक नहीं होते इसलिए इन्हे तोड़ने में लेश मात्र का भी संकोच करना दुःख का कारण होता है। ऐसी स्थिति में खुद अपने व्यक्तित्व पर आक्षेप लेकर, अपने चरित्र पर सारे वार झेल कर भी नितीश जी की पलटी ने समाज के अंतिम पायदान पर खड़े वचनधारक को एक नयी दिशा दिखाई है। 

पलटना या पलट देना पहचान है हमारी 

पलटना तो हम बिहारियों का पसंदीदा शगल है, अगर किसी को इस बात पर आपत्ति हो तो मैं अपनी कही बात से पलट भी सकता हूँ , लेकिन एक बिहारी के नाते मुझे पलटना अच्छा लगता है, धुप में गोईंठे को सुखाने के लिए पलटना, गोईंठे की आंच पर सिक रही लिट्टी को पलटना, सिक चुकी लिट्टी को पलट कर घी मलना, धान को उलट पुलट कर सुखाना, नहर में पलटी मार मार कर नहाना, माशूका की गली में पलट पलट कर जाना और मुसीबत आने पर अपनी कही बात से पलट जाना इसमें नया क्या है ? कुछ भी नहीं !  एक बिहारी होने के नाते नितीश के इस कदम की विवेचना के पश्चात मुझे सच में पश्चाताप है।  दुःख है की इस महाप्रतापी कार्य को अनेकानेक निकृष्ट उपमा से सम्बोधित कर लोग नितीश जी का मजाक उड़ा रहे हैं। मैं पलट पलट कर इस की निंदा करता हूँ और समर्थन करता हूँ श्रीमान नितीश जी के इस कथन का 

"तुम्हारे पलटने में वो हमारी वाली बात नहीं" 
"ठण्ड में पलट जाए ये सबकी औकात नहीं"