राजकीय जनजातीय हिजला मेला : मयूराक्षी के तट पर गीत संगीत और मस्ती से भरपूर सात दिनों तक चलने वाला मेला !
राजकीय जनजातीय हिजला मेला की विरासत और दिलचस्प कहानी
मयूराक्षी के तट पर हर साल आयोजित होता है हिजला मेला
अंग्रेज जिलाधिकारी के द्वारा की गयी थी शुरुआत
2008 में मिला महोत्सव का स्वरुप
2015 में मिली राजकीय मेले के रूप में मान्यता
झारखण्ड की उपराजधानी दुमका से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित मयूराक्षी नदी के खूबसूरत तट पर राजकीय जनजातीय हिजला महोत्सव 2024 की भव्य शुरुआत हो चुकी है। हर वर्ष माघ-फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में यह मेला आयोजित किया जाता है। संथाली संस्कृति, गीत-संगीत और परंपरा का सुन्दर सामंजस्य है राजकीय जनजातीय हिजला मेला।
कैसे मिला इस मेले को हिजला नाम ?
मान्यता है की इस मेले को जिसमें समूचे संथाल परगना के लोग और कलाकार सम्मिलित होते हैं हिजला नाम मिलने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। दरअसल अंग्रेजों की हुकूमत में जब यहां संथाल हूल चरम पर था और संथाल लड़ाकों ने अंग्रेजी हुकूमत के नाक में दम कर रखा था तब इस मेले की शुरुआत हुयी। यह मेला अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा ही शुरू किया गया था। मान्यता है की इसका नाम हिजला दरअसल दो अंग्रेजी शब्दों 'हिज' और 'लॉज' के मेल से हुआ है। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में स्थानीय लोग अंग्रेजों को शायद इसी नाम से सम्बोधित करते थे। एक मान्यता यह भी है की इस मेले का नाम हिजला गाँव के नाम पर रखा गया। नाम रखने के पीछे जो भी वजह हो लेकिन इस मेले के आयोजन से यहां के जनजातीय आबादी को हर्ष,आनंद और उत्सव का एक शानदार मौका जरूर मिल जाता है।
कैसे हुयी हिजला मेले की शुरुआत ?
हिजला मेले के शुरू होने के पीछे की वजह भी बड़ी अनोखी है। संथाल हूल आंदोलन के कारण स्थानीय जनजाति आबादी और अंग्रेजी हुकूमत के बीच अविश्वास और असहयोग की बड़ी खाई निर्मित हो चुकी थी, जिसे पाटने के लिए तत्कालीन अंग्रेज जिलाधिकारी जॉन रॉबर्ट्स कॉस्टयर्स ने 3 फ़रवरी 1890 को इस मेले की शुरुआत की। संभवतः यह झारखण्ड का इकलौता मेला है जिसके पीछे एक अंग्रेज जिलाधिकारी की सोच है। इस वाकये से आप इस मेले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता का अंदाजा लगा सकते हैं। तबसे हर साल यह मेला मयूराक्षी के तट पर संथाली भाषा, संस्कृति और परम्परा में रूचि रखने वालों को आकर्षित करता आ रहा है। त्रिकूट पर्वत से निकलने वाली मयूराक्षी के सूंदर तट पर पठारों और वनों के बीच आयोजित होने वाले इस मेले में भारी भीड़ इकठ्ठा होती है।
हिजला मेले के मुख्य आकर्षण
संथाली संस्कृति और परिवेश से परिचय कराता हिजला मेला हर उम्र के सैलानियों के लिए हर्षोउल्लास और उमंग से भरपूर आयोजन है। मेले में जहाँ एक ओर संथाल की जनजातीय संस्कृति, कला और नृत्य-संगीत का आयोजन होता है, वहीं दूसरी ओर कला मंच पर पुरे दिन बच्चों का क्विज , भाषण, वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं स्थानीय और देश विदेश के बुद्धिजीवियों के मध्य चर्चा का आयोजन और रात में स्थानीय कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा पारंपारिक नाटकों का मंचन भी होता रहता है। मेले के बाहरी कला मंच पर सांस्कृतिक दलों के मध्य आकर्षक प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होता है जिसमें राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर के बेहतरीन कलाकारों की प्रस्तुति, खेल-कूद प्रतियोगिता के साथ-साथ किताबों और स्थानीय देसी व्यंजनों का लत्फ उठाया जाता है। राजकीय जनजातीय हिजला मेले में मनोरंजन, पशु-पक्षी, कृषि यंत्रों और अन्य दैनिक और सजावटी वस्तुओं की ढेरों दुकानें लगाई जाती है जिसमें स्थानीय लोग जम कर खरीदारी करते हैं। झारखण्ड सरकार द्वारा लगाए गए विभिन्न स्टॉलों में आगंतुक सरकार की विभिन्न योजनाओं से रुबरु होते हैं।
हिजला मेला का राजकीय स्वरुप
झारखण्ड सरकार ने इस हिजला मेले को साल 2008 से एक महोत्सव के रुप में मनाने का फैसला किया। वहीँ वर्ष 2015 में झारखण्ड सरकार द्वारा इस मेला को राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके बाद से यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के नाम से जाना जाने लगा ।
क्यों आएं हिजला मेले में ?
राजकीय जनजातीय हिजला मेला संथाली जनजातियों की लुभावनी संस्कृति, रंग-बिरंगे परिधानों और समृद्ध लोक संगीत का अदुभुत आयोजन है। यदि आप भी इस शानदार जनजातीय-संस्कृति और लोक गीत-संगीत को करीब से महसूस करना चाहते है, अगर आप एक प्रकृति प्रेमी हैं और प्रकृति में मौजूद शाश्वत संगीत और उसके लय का अनुभव करना चाहते है, अगर आप कुछ पल शहर के शोर शराबे से दूर पारम्परिक वाद्य-यंत्रो की लोक मंगल समरसता में डूबना चाहते हैं तो आपको एक बार हिजला मेला अवश्य आना चाहिए ।
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