पवित्र धार्मिक नगरी इटखोरी जहां विराजती हैं माँ भद्रकाली, सैलानियों को लुभाता है इटखोरी महोत्सव
चतरा जिले के इटखोरी स्थित भव्य माँ भद्रकाली मंदिर परिसर में हर साल आयोजित होता है राजकीय इटखोरी महोत्सव
- झारखड के चतरा जिले में स्थित है इटखोरी
- 200 ईसा पूर्व पुरानी है इटखोरी की विरासत
- हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पवित्र त्रिवेणी है इटखोरी
- हर वर्ष आयोजित होता है भव्य राजकीय इटखोरी महोत्सव
कैसे आएं इटखोरी ?
राजधानी रांची से 158 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध इटखोरी नामक स्थान। यह झारखण्ड राज्य के चतरा जिले का एक ब्लॉक है। इंटखोरी जाने के लिए सड़क सबसे सुगम मार्ग है। आप किसी भी साधन से रांची आकर यहां से अपने निजी या सरकारी बस द्वारा इटखोरी पहुँच सकते हैं। रांची और गया दोनों एयरपोर्ट से यहां की यात्रा बेहद आसान है।
इटखोरी का इतिहास
एक अति प्राचीन और ऐतिहासिक स्थान होने के साथ-साथ इटखोरी एक प्रसिद्ध बौद्ध एवं जैन धार्मिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है, इटखोरी अपने अति प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों और पुरातात्विक स्थलों के लिए बेहद मशहूर है। इटखोरी में 200 ईसा पूर्व और 1200 ईस्वी के बीच के विभिन्न बौद्ध अवशेष पाए गए हैं जो इस स्थान की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को प्रमाणित करते हैं । इटखोरी का सबसे बड़ा आकर्षण 9वीं शताब्दी का शानदार और भव्य मां भद्रकाली मंदिर परिसर है। माँ भद्रकाली का दिव्य विग्रह इस क्षेत्र के अति समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के एक साक्ष्य के तौर पर उपस्थित हैं। यहां एक शिव मंदिर भी है जो मां भद्रकाली मंदिर से लगा हुआ ही है , यह शिव मंदिर अपने भव्य शिवलिंग के लिए जाना जाता है, जिसमें 1,008 शिवलिंग नक्काशी के साथ प्रतिष्ठित हैं। इटखोरी का एक और महत्वपूर्ण आकर्षण प्राचीन स्तूप है, इसमें बोधिसत्वों की 104 छवियां विद्यमान हैं तथा इसके दोनों ओर महात्मा बुद्ध के चार पवित्र उपदेशों के शीलालेख स्थित हैं। वहीँ पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा भी है जिसके सन्दर्भ में मान्याताएं हैं कि इस पर जैन धर्म के 10 वें तीर्थंकर शीतलनाथ के चरणों के निशान हैं।
कैसे पड़ा इटखोरी नाम ?
इटखोरी का नाम इटखोरी पड़ने के पीछे एक अति प्राचीन और दिलचस्प वृत्तांत हैं। ऐसी मान्यता है की इटखोरी के इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध गहन तपस्या में लीन थे। महात्मा बुद्ध की चाची उन्हें अपने साथ वापस ले जाने के लिए वहाँ आयी और पहले तो काफी समय तक उन्होंने महात्मा बुद्ध के तपस्या से जागने का इंतजार किया लेकिन जब काफी दिन बीत गए तो हार कर उन्होंने महात्मा बुद्ध को तपस्या से जगाने के लिए अनेकानेक यत्न किये। माना जाता है कि भगवान बुद्ध की चाची जब हजारों प्रयास के बाद भी उन्हें ध्यान से विचलित करने में विफल रहीं तो उन्होंने यहां पर समर्पण कर दिया। महात्मा बुद्ध की चाची के मुंह से जो शब्द निकले वो थे "इतखोयी" अर्थात उन्होंने महात्मा बुद्ध को यहीं खो दिया। तबसे इस परम पावन स्थान का नाम 'इतखोयी' पड़ा, जो कालांतर में इटखोरी के नाम से मशहूर हुआ। यहां की महाने नदी के द्वारा ही महात्मा बुध को बोधगया नामक स्थान की दिशा मालूम पड़ी जहां उन्हें दिव्यज्ञान की प्राप्ति हुयी।
इटखोरी महोत्सव का इतिहास
इंटखोरी महोत्सव की शुरुआत वर्ष 2015 में हुयी। इंटखोरी महोत्सव की कल्पना और शुरुवात का श्रेय तत्कालीन चतरा संसद श्री सुनील कुमार सिंह को जाती है। पहले पहल इटखोरी महोत्सव का आयोजन चतरा जिले में पर्यटन और सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास की उम्मीदों के साथ किया गया। जब इस इटखोरी महोत्सव की नींव रखी गई थी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी की एक दिन ये महोत्सव इतना भव्य और विस्तृत रूप ले लेगा। इटखोरी महोत्सव एक ऐसा महोत्सव साबित हुआ जिसने एक साल के अंदर ही राजकीय मान्यता प्राप्त कर ली। इटखोरी महोत्सव वर्ष 2016 में ही राजकीय उत्सव का दर्जा वर्ष प्राप्त हो गया। इटखोरी महोत्सव की शुरुवात वर्ष 2015 में ऐतिहासिक मां भद्रकाली मंदिर परिसर में हुयी थी।
500 करोड़ के बजट से हो रहा है इटखोरी मंदिर का जीर्णोद्धार
इटखोरी स्थित माँ भद्रकाली की ऐतिहासिक नगरी एक बार फिर राजकीय इटखोरी महोत्सव 2024 में श्रद्धालु भक्तों तथा पर्यटकों की भीड़ से गुलजार होने वाली है। हर बार इस महोत्सव के दौरान आधी रात तक इटखोरी मंदिर परिसर उत्साह और उमंग के माहौल में डूबा रहता है। इस राजकीय इटखोरी महोत्सव ने मां भद्रकाली मंदिर परिसर के साथ साथ पुरे जिले के धार्मिक तथा प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के विकास का भी मार्ग प्रशस्त किया है। झारखण्ड सरकार द्वारा यहां के पर्यटन विकास को लेकर कई परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। माँ भद्रकाली मंदिर परिसर के लिए पांच सौ करोड़ रुपये के मास्टर प्लान की योजना तैयार हो चुकी है और इसकी स्वीकृति भी दी जा चुकी है। मास्टर प्लान की योजना के तहत साढे चार करोड़ रुपये की लागत से माँ भद्रकाली मंदिर परिसर में अत्याधुनिक म्यूजियम का निर्माण कार्य तेजी से जारी है। । 25 करोड़ रुपये की लागत से बिजली व्यवस्था तथा 25 करोड़ रुपये की लागत से भव्य अतिथिशाला का भी निर्माण पूरा किया जा चुका है।
मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन करेंगे राजकीय इटखोरी महोत्सव 2024 का उद्धघाटन
इस वर्ष यानी 2024 में 19 फ़रवरी से राजकीय इटखोरी महोत्सव की शुरुआत हो रही है। 19 फ़रवरी से 21 फरवरी तक आयोजित होने वाले तीन दिवसीय राजकीय इटखोरी महोत्सव का उद्घाटन इस बार झारखण्ड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के हाथों 19 फरवरी को होगी।
राजकीय इटखोरी महोत्सव 2024 के कार्यक्रम
- 19 फरवरी को झारखण्ड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के हाथो होगा इटखोरी महोत्सव का उद्घाटन
- 19 फ़रवरी को संध्या 6:30 बजे से मुकुंद नायक एंड ग्रुप,सत्या ठाकुर एंड ग्रुप, अल्ताफ राजा एंड ग्रुप का कार्यक्रम
- 19 फ़रवरी को रात्रि 9:30 बजे से 11 बजे तक अक्षरा सिंह की रंगारंग प्रस्तुति होगी
- 20 फरवरी को ‘राष्ट्रीय पटल पर इटखोरी का पुरातात्विक महत्व’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
- 20 फ़रवरी को संध्या 6:30 बजे से शालिनी दुबे एवं ग्रुप तत्पश्चात साक्षी प्रिया दुबे और उनके ग्रुप की प्रस्तुति
- 20 फ़रवरी को रात के 10 बजे से 11:30 बजे तक विनोद राठौर एंड ग्रुप के कार्यक्रम
- 21 फरवरी को मृणालिनी अखौरी, पूजा चटर्जी एंड ग्रुप का कार्यक्रम, समापन समारोह
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