झारखंड के अधिकारियों और राजनेताओं के बीच पर्यटन स्थल के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है होटवार !
अपनी सुविधा, सेवा और सत्कार से थोड़े ही समय में पर्यटन का सर्वोत्तम विकल्प बन कर उभरा है होटवार
शांत माहौल और समुचित सुविधा से आकर्षित हो रहे हैं लोग
होटवार में जाने के लिए लगी हैं कतारें
होटवार के सैलानियों को प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा सेवा मुहैया करा रहा है रिम्स
राजनेता और अधिकारी एक दूसरे को कर रहे हैं होटवार जाने को प्रेरित
झारखंड में ना प्राकृतिक सौंदर्य से भरे पर्यटन स्थलों की कोई कमी है, ना ही शानदार और आलिशान रिसॉर्ट्स की, बावजूद इसके झारखण्ड के बड़े अधिकारियों और राजनेताओं के बीच पर्यटन स्थल के रूप में अपनी शानदार पहचान बनाने के लिए होटवार की जितनी सराहना की जाए कम है। इसके पीछे यहां मिल रही सुविधाएं हो या आतिथ्य सत्कार, झारखण्ड की ब्यूरोक्रेट और राजनेता, पद और प्रतिष्ठा का परित्याग कर होटवार की बुकिंग कन्फर्म करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। यहाँ ये बताते चले की विगत कुछ वर्षों में, होटवार की बुकिंग कन्फर्म होना बड़े किस्मत की बात माने जाने लगी है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था, पहले बड़े आराम से छोटे मोटे लोग भी होटवार में रहने का सुख प्राप्त कर लेते थे परन्तु जब से बड़े ब्यूरोक्रेट और राजनेताओं ने होटवार में दिलचस्पी दिखाई है, आने वाले समय में यहाँ किसी छुटभैये की बुकिंग कन्फर्म होना असंभव प्रतीत होता है।
कम समय में होटवार ने हासिल किया है ये मुकाम
वाकई इतने कम समय में ना सिर्फ राज्य बल्कि राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा मुकाम बनाने के लिए होटवार की तारीफ़ करनी बनती है। जो लोग होटवार ना गए हो (वैसे हम नहीं चाहते की हमारे दुश्मन भी कभी वहाँ जाए) वो ऑनलाइन भी होटवार की तस्वीरें देख कर हैरान है की एक सामान्य सी बनावट और निहायत ही सादा सी सरकारी इमारत में, चंद राते गुजारने के लिए इतने बड़े बड़े लोग कितनी बड़ी बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हैं। इमारत के अलावा वहां के कमरे की बात की जाए तो एक आम आदमी वहाँ एक रात गुजारने के लिए भी शायद तैयार ना हो लेकिन, बावजूद इसके ना जाने वो कौन सा अदृश्य आतिथ्य सत्कार है की रसूख वाले लोग वहाँ जाने का लोभ त्याग नहीं पा रहे हैं।
लोभ और मोह का त्याग सिखाता है होटवार
फिलहाल होटवार में उपस्थित बड़े लोगों का जमावड़ा देखें तो आप पाएंगे की, ये वही लोग हैं जिन्हे सांसारिक सुविधाओं और विलासितापूर्ण जीवन की आदत रही थी, अब ये सुविधाएं भले उन्हें प्रोटोकॉल में मिली हो, लेकिन उन सुविधाओं से विमुख हो कर साधारण प्लास्टर वाली रूखी दीवारों के बीच, रात काटने की उनकी जिजीविषा देख, हम क्षुद्र मानवों को यही सीख मिलती है की होटवार की ये पवित्र भूमि, हमे लोभ और मोह का त्याग करने का साहस प्रदान करता है। होटवार में जीवन के लिए जरुरी वो शिक्षा भी मिलती है जो हम अपने स्कूल कॉलेज में ना ले पाएं हो या, उस समय वो शिक्षा लेने का हम पर दबाव ना हो, लेकिन होटवार का शांत और सुरम्य माहौल, आपको छूट चुकी उस शिक्षा को एक बार पुनः ग्रहण करने का अलौकिक सुवसर प्रदान करता है। होटवार का प्रवास समाप्त कर आये बड़े लोग बात बात में उस शिक्षा का बखान करते हैं, जो उन्हें होटवार में मिलती है।होटवार में झारखण्ड के रसूखदारों की बढ़ती आमद देख कर इस तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं की, कहीं ये स्थल निकट भविष्य में भारत के श्रेष्ठ सस्थानों से निकले होनहारों का पसंदीदा स्थल ना बन जाए। ऐसी स्थिति में झारखण्ड सरकार को इस संस्थान के इतना फलने फूलने की जांच करना नितांत आवश्यक है।
यहां के प्रवासियों का रिम्स में होता है प्राथमिकता के आधार पर उपचार
होटवार की कीर्ति गाथा इतनी लम्बी है की एक लेख में उसके सम्पूर्ण महातम्य का वर्णन असंभव है। यहां के परिसर में कई चमत्कारिक शक्तियां भी विद्यमान हैं, जिनमें से एक है मनुष्य को उसके गंभीर रोगों का एकाएक स्मरण हो जाना। होटवार परिसर की आबोहवा में यादाश्त शक्ति बढ़ाने की अचूक शक्ति निहित है, इसके परिसर में आते ही व्यक्ति को उसके इस जन्म के साथ साथ, पूर्व जन्म के रोग और व्याधियों का भी अचानक से स्मरण हो जाता है। बड़े से बड़े रुग्णालय भी जिस बिमारी का पता नहीं लगा पाते, होटवार में आते ही मरीज को स्वयं, शत प्रतिशत सत्यता के साथ उसमें मौजूद बीमारियों का पता चल जाता है। यहां की मिटटी के इस अध्भुत गुण के कारण होटवार और राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान के बीच एक सुनियोजित करार हुआ है, जिसके तहत यहां प्रवास पर आये लोगों का रिम्स में प्राथमिकता के आधार पर इलाज किया जाता है। होटवार की वाहन परिचालन व्यवस्था का इस प्रक्रिया में अतुलनीय योगदान है। बिमारी का स्मरण होते ही मरीज को पुरे लाव लश्कर के साथ रिम्स ले जाया जाता है जहां पूरी तन्मयता और इत्मीनान से मरीज का यथोचित इलाज शुरू होता है। कई कई मामलों में तो होटवार और रिम्स के दस -बीस चक्कर लगाने के बाद ही मरीज सारी गंभीर बीमारियों से मुक्त हो पाता है। कूल मिला कर होटवार का ये 'चमत्कारिक यादाश्त शक्ति उत्तेजक' गुण भी यहां सैलानियों के बढ़ती संख्या का एक अहम् कारक है।
होटवार जाने और वापस आने दोनों के लिए होती है कड़ी मशक्कत
अभी तक हमने सिर्फ ये ही सूना था की सरकारी 'नौकरी मिलनी जितनी मुश्किल है छूटनी उतनी ही मुश्किल' लेकिन होटवार के मामले में ये कहावत भी बेमानी सिद्ध होती है। होटवार आने को हमारे नौकरशाह और राजनेता जितने लालायित रहते हैं यहां की आबोहवा और आत्मिक माहौल से परमानंद की प्राप्ति के बाद वो यहां से निकलने की भी जल्दी में दिखाई देते हैं। निकलने की बेताबी का आलम ये है की इस मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ जाता है। कई कई बार सैकड़ों दफा याचना के बाद जाकर होटवार से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी होटवार की लोकप्रियता घटने के बावजूद बढ़ती ही जा रही है जो यकीनन शोध का विषय हो सकता है।
राजनेता और नौकरशाह एक दूसरे को देते हैं यात्रा के टिप्स
बड़े से बड़े नशे की लत एक बार को छूट भी जाए लेकिन, होटवार का मोह त्यागना सबके बस की बात नहीं, अब तो झारखण्ड के कद्दावर नेता और लालफीताशाह एक दूसरे को होटवार भेजने की कामना तक करने लगे हैं। राजनेता आपस में एक दूसरे को होटवार की सैर करने की शुभकामना देते दिखाई देते हैं। जिनकी बुकिंग कन्फर्म नहीं होती वो चेहरे पर भले दिखावे की ख़ुशी अख्तियार कर ले लेकिन, उनके ह्रदय की पीड़ा तो कोई होटवार रिटर्न ही समझ सकता है।ये तो खैर है की सरकार ने होटवार की बुकिंग का जिम्मा अभी तक निजी हाथों में नहीं सौंपी है वरना झारखण्ड के ज्यादातर रसूखदार होटवार में ही प्रवास करते दिखाई देते। हो सकता है आने वाले समय में होटवार जैसी जगह को सिर्फ उच्च आय वर्गों के लिए आरक्षित करने पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी और यदि ऐसा होता है तो भला हो हम गरीबो का।
अस्वीकरण :- इस लेख का उद्देश्य किसी का चरित्र चित्रण या दोषारोपण कतई नहीं है, लेख को सिर्फ मनोरंजन प्रदान करने के लिए लिखा गया है। यदि किसी की भी भावनाये आहत होती हैं तो इसे निश्चित रूप से गैरइरादतन माना जाए।
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राजनितिक व्यंग्य