कब लागू होगा झारखण्ड में UCC, बड़ी जनजातीय आबादी और गैर बीजेपी सरकार है बड़ी चुनौती।
उत्तराखंड में UCC बिल पेश होने के साथ झारखण्ड समेत अन्य राज्यों में भी चर्चाएं तेज
- बीजेपी शाषित अन्य राज्यों में UCC को लेकर सुगबुगाहट
- उत्तराखंड में अनुसूचित जनजातियों को मिली है UCC से इम्मयूनिटी
- झारखण्ड में लागू हो सकता है UCC ?
उत्तराखंड की विधानसभा में टेबल हुआ यूनिफार्म सिविल कोड बिल
मंगलवार की सुबह उत्तराखंड के लिए एक नयी खबर साथ लायी, मंगलवार को ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा के पटल पर UCC बिल पेश किया। इसे 'एक देश एक विधान' के अपने वैचारिक सोच को अमली जामा पहनाने की ये भारतीय जनता पार्टी की एक पहल है, जिसकी शुरुआत उत्तराखंड राज्य से हुयी है। पिछले दिनों UCC पर गठित समिति ने श्री धामी को यूनिफार्म सिविल कोड का खाका सौंपा था जिसे अगले ही दिन कैबिनेट ने पास भी कर दिया। विपक्ष के विरोध के बावजूद UCC को लेकर पुष्कर सिंह धामी की ये त्वरित गति देखने लायक है। इसमें कोई शंका नहीं की संख्याबल के आधार पर उत्तराखंड विधानसभा में UCC बिल जरूर पास हो जाएगा लेकिन उत्तराखंड के आम जनजीवन में रचने बसने के लिए इसे एक लम्बे समय की आवश्यकता होगी।
उत्तराखंड के UCC बिल में क्या है ख़ास ?
उत्तराखंड विधानसभा में पेश UCC बिल को "सामान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024" नाम दिया गया है। इस बिल के कानून का रूप लेते ही उत्तराखंड में विवाह,तलाक,वसीयत और गोद लेने के अलग अलग धर्मों के अलग अलग नियम हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएंगे। इन सब के बदले उत्तराखंड सामान नागरिक संहिता में लाये गए प्रावधान ही अंतिम और मान्य होंगे। UCC के ये प्रावधान सभी धर्मों के लोगों के लिए मान्य होंगे। महिला और पुरुषों को तलाक लेने के एक सामान अधिकार प्रदान किये जाएंगे। पुत्र और पुत्री को सम्पति में सामान अधिकार मिलेगा। लिव इन संबंधों के लिए इस बिल में विशेष प्रावधान किये गए हैं जिनमें लिव इन संबंधों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है। लिव इन संबंधों में किये गए घोषणा के गलत या भ्रामक पाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान किया गया है। बहु-विवाह पूरी तरह गैर-क़ानूनी होगी और तलाक के बाद पुनः उसी व्यक्ति या महिला से विवाह करने पर किसी तरह की कोई परम्पराएं और शर्त मान्य नहीं होगी। धर्मपरिवर्तन के मुद्दे पर भी सामान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 में स्पष्ट प्रावधान है। धर्म परिवर्तन जबरदस्ती हुआ हो या सहमति के बिना हुआ हो ऐसी सूरत में पीड़ित को तलाक लेने और गुजारा भत्ता लेने का हक़ होगा। विवाह के सम्बन्ध में भी कई सुस्पष्ट प्रावधान हैं UCC बिल में, जैसे विवाह का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य कर दिया गया है और बिना रजिस्ट्रेशन कराये कोई भी सरकारी योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा।
अन्य राज्यों में भी UCC को लेकर शुरू हुयी सुगबुगाहट
उत्तराखंड की विधानसभा में UCC बिल पेश होते ही अन्य राज्यों में इसे लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। विशेषकर बीजेपी शाषित राज्यों में इसे लेकर तेज सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। राजस्थान के कई मंत्रियों ने UCC बिल के जल्दी पेश किये जाने को लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा करने की बात कही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का बयान तो नहीं आया पर दोनों उप मुख्यमंत्रियों ने इसे लेकर बयान जरूर दिए हैं। ब्रजेश पाठक जी के अनुसार उत्तराखंड से प्रेरणा लेकर जल्दी ही यूपी में भी UCC को लाने की कवायद शुरू की जायेगी। असम के मुख्यमंत्री पहले ही इस दिशा में प्रयास शुरू कर चुके हैं। मध्य प्रदेश के बीजेपी नेताओं ने भी जल्दी ही अपने प्रदेश में UCC लाने की प्रक्रिया के शुरू होने का अंदाजा जताया है।
झारखण्ड में लागू हो सकता है UCC ?
अन्य राज्यों की तुलना में हालांकि झारखण्ड में UCC को लेकर चर्चा का अनुपात काफी कम है, लेकिन अखबारों में रोज छप रहीं इसकी खबरें आम जनता को इसके बारे में सोचने और चर्चा करने को प्रेरित कर रहे हैं। सामान नागरिक संहिता को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देशों को देखें तो उसमें स्पष्ट है की पुरे देश में UCC लागू करने की दिशा में केंद्र को प्रयास करने के सुझाव दिए गए हैं। ऐसे में झारखण्ड की बड़ी जनजातीय आबादी और बीजेपी का कमजोर राजनितिक प्रदर्शन UCC के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट प्रतीत होती है। झारखण्ड फिलहाल राजनितिक हलचल और अन्य सामाजिक मुद्दों जैसे सरना धर्म कोड, डी-लिस्टिंग, जाती जनगणना और भ्रस्टाचार के आरोप प्रत्यारोप के मामलों में उलझा हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री बहुमत तो साबित कर चुके हैं लेकिन मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर भयंकर खिंच-तान से निपटने का प्रयास कर रहे हैं।महागठबंधन की सरकार में UCC की दिशा में प्रयास तो दूर इसकी चर्चा होना भी असंभव प्रतीत होता है। अगले चुनाव के बाद यदि बीजेपी सत्ता में आती है तो ही जाकर UCC लाने का प्रयास किया जा सकता है। एक बड़ी जनजातीय आबादी और मजबूत विपक्ष बहुमत के बाद भी झारखण्ड में UCC लाना कोई आसान काम नहीं होगा और इन समस्या से सरकार कैसे निबटेगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
विभिन्न धर्मों के गैरजरूरी रिवाजों रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने का UCC एक कारगर मार्ग है, देश की अन्य सरकार आज भले उत्तराखंड की तर्ज पर अपने यहां UCC लागू करने में कतरा रही हो, लेकिन वक़्त गवाह है की भारत की जनता ने हमेशा जड़ता को छोड़ कर रचनात्मकता और सुधार को गले लगाया है ऐसे में आज नहीं तो कल पूरा राष्ट्र UCC के प्रावधानों से आच्छादित होगा, वो दिन दूर है लेकिन असंभव नहीं।
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