खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे चार यार, संजय, सत्येंद्र, मनीष और केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल गिरफ़्तार, हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद रात 9 बजे हुए अरेस्ट
दसवां सम्मन और घर की तलाशी का वारंट लेकर पहुंची थी ईडी
केजरीवाल और परिवार के लोगों के मोबाइल को जब्त किया
केजरीवाल के घर के बाहर आप कार्यकर्ताओं ने किया हंगामा
इंडी गठबंधन का भाजपा पर जोरदार जुबानी हमला
डेढ़ महीने में ईडी ने किया दो मुख्यमंत्री को गिरफ़्तार
आखिरकार ख़त्म हुआ सम्मन का सिलसिला
ईडी द्वारा दिल्ली शराब नीति घोटाले में मुख्यमंत्री केजरीवाल को लगातार दिए जा रहे सम्मन का सिलसिला ख़त्म हो चूका है। गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री केजरावाल को गिरफ़्तारी से छूट दिए जाने से इंकार के बाद ईडी हरकत में आ गयी। ईडी के आला अधिकारी भारी दल-बल के साथ दसवा सम्मन और तलाशी वारंट लेकर मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। हाई कोर्ट द्वारा गिरफ़्तारी से रहत देने वाली याचिका के खारिज करने के बाद से ही ये अंदेशा जताया जा रहा था की अब केजरीवाल की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं लेकिन सरगर्मी इतनी तेज हो जायेगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था। ईडी अधिकारियों ने बड़े ही पेशेवर अंदाज में मुक्कमल तैयारी के साथ केजरीवाल के आवास पर धावा बोला और इससे पहले की आप कार्यकर्ता गोलबंद हो कर तेज विरोध कर पाते ईडी ने रात 9 बजकर 5 मिनट पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ़्तार कर लिया। रास्ते पर जमे आप कार्यकर्ताओं को हटाने के बाद तकरीबन 11 बजे अधिकारी मुख्यमंत्री को लेकर ईडी मुख्यालय की तरफ कूच कर गए
किसी मुख्यमंत्री की पहली बार हुयी है गिरफ़्तारी
यूँ तो देश में गिरफ़्तारी से पूर्व राजनितिक पद छोड़ने की पुरानी परंपरा है। हाल में ही ईडी द्वारा जब झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ़्तार किया जा रहा था तो गिरफ़्तारी से पूर्व हेमंत सोरेन ने राजभवन जा कर अपना इस्तीफा सौंप दिया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस परंपरा को निभाना उचित नहीं समझा क्योंकि वो कई दिनों पहले से ही ये कह रहे थे की अगर उनकी गिरफ़्तारी हुयी तो भी वो इस्तीफा नहीं देंगे। राजनितिक पंडित इसके पीछे कई वजह बताते हैं। एक वजह तो ये हो सकती है की मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह जो पहले से ही ईडी द्वारा जेल भेजे जा चुके हैं इनके बाद आप में किसी नेता का राजनितिक कद और विश्वसनीयता इतनी नहीं है जिसपर केजरीवाल भरोसा जता सकें। दूसरी वजह ये भी हो सकती है की केजरीवाल गिरफ़्तारी के बाद भी संवैधानिक शक्तियों की मदद से राहत पाने का विकल्प खुला रखना चाहते हैं। कारण चाहे जो भी हो लेकिन इस्तीफा ना देकर केजरीवाल ने खुद को मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गिरफ़्तार होने का एक नया कीर्तिमान तो बना हो लिया है।
इंडी गठबंधन कितना कर पायेगा मदद
चुनाव से ऐन पहले ही केजरीवाल को अपनी गिरफ़्तारी का डर सताने लगा था, यही कारण था की वो इंडी गठबंधन में बहुत मुखरता के साथ पेश आने लगे थे। ये एक कड़वी सच्चाई तो है की राजनीती में आते ही अरविन्द केजरीवाल जिन जिन राजनेताओं पर भ्रस्टाचार के गंभीर आरोप लगाते थे अब उन्ही के साथ मंच साझा कर खुद को कट्टर ईमानदार और देश का सबसे स्वच्छ छवि का राजनेता बताते नहीं थकते थे। केजरीवाल की गिरफ़्तारी के साथ ही भाजपा विरोधी बयानों के तीर इंडी गठबंधन के तरकश से छूटने लगे हैं। ये तो तय है की अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी को सहानभूति पाने के एक बड़े अवसर के रूप में भुनाने के लिए इंडी गठबंधन बिलकुल तैयार बैठा है। एक परेशानी और है की विपक्षी गठबंधन के नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद पूरी पार्टी उन्हें क़ानूनी मदद पहुंचाने में लग जाती है और इससे चुनाव से उनका ध्यान हटने लगता है। बहरहाल आगे इंडी गठबंधन, अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की कितनी मदद कर पायेगा ये तो आने वाले समय और लोकसभा चुनाव के नतीजों से ही पता चल पायेगा।
क्या होगा मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का
मुख्यमंत्री केजरीवाल का भविष्य क्या होगा इसे लेकर राजनितिक पंडितों के अपने अपने कयास हैं। कुछ का मानना है की ईडी के पास केजरीवाल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं जिन्हे देखने के बाद ही दिल्ली हाई कोर्ट ने गिरफ़्तारी से छूट की उनकी याचिका ख़ारिज की। हालिया करवाई में, के कविता की गिरफ़्तारी भी इसी से जोड़ कर देखी जा रही है। अगर तो ईडी के पास अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ पर्याप्त सबूत है तो लोकसभा चुनाव से पहले उनकी रिहाई की कोई सूरत नजर नहीं आती। वहीँ एक दूसरा विचार है की शायद देश की सर्वोच्च अदालत में आनन फानन में दायर की गयी उनकी दया याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट उन्हें कुछ छूट दे सकती है। अब राजधानी के मुख्यमंत्री पुरे चुनाव खुद की रिहाई की कोशिशों में जुटे रहते हैं या फिर आजाद हो कर दुगने ताकत से भाजपा पर हमलावर होते हैं ये आज के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पता चल पायेगा। फैसला चाहे जो भी लेकिन अरविन्द केजरीवाल को गिरफ़्तार कर ईडी ने इतना तो साबित कर ही दिया है की वो बिना पद और प्रतिष्ठा देखे किसी भी व्यक्ति को कानून के कटघड़े में खड़ा कर ही सकती है।
क्या है दिल्ली शराब नीति
दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को राजधानी प्रक्षेत्र में नई शराब नीति लागू की थी। नयी शराब नीति के तहत राजधानी प्रक्षेत्र को 32 जोन में बांटा गया और हर जोन में 27 शराब दुकानें खोलने की बात तय हुयी। इस तरह से पूरी राजधानी में कूल 849 शराब की दुकानें खोली जानी थीं। नयी नीति के तहत सभी सरकारी ठेकों को बंद कर सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया, जबकि इससे पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं। नई शराब नीति लागू होने के बाद सभी 100 प्रतिशत शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इससे पीछे ये तर्क दिया कि इससे 3500 करोड़ रुपए का फायदा होगा। दिल्ली सरकार की नई शराब नीति आने के बाद 750 एमएल की बोतल का दाम 530 रुपए से बढ़ाकर 560 रुपए कर दिया गया। इससे खुदरा कारोबारियों का मुनाफा 33.35 से बढ़कर सीधे 363.27 रुपए पहुंच गया। यानी जहां रिटेल कारोबारियों को सीधे 10 गुना फायदा होने लगा, वहीं सरकार को मिलने वाले 329.89 रुपए का लाभ घटकर 3.78 पैसे रह गया। इसमें 1.88 रुपए उत्पाद शुल्क और 1.90 रुपए वैट भी शामिल है। यही वो विवादित शराब नीति है जिसकी आंच आज दिल्ली मुख्यमंत्री आवास तक पहुँच चुकी है और इस नीति को अपनी सहमति देने वाले केजरीवाल गिरफ़्तार हो चुके हैं।
अस्वीकरण - लेख में इस्तेमाल की गयी तसवीरें काल्पनिक हैं और इनका उपयोग सिर्फ आभासीय उद्देश्य से किया गया है।
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